हज़रत अली (अ:स)
हज़रत अली का जन्म 13 रजब 30 हिज़री( 23 October 600 A.D.)पैग़म्बर (स:अ:व:व) की हिजरत के 23 साल पहले, काबे में हुआ था इनके पिता का नाम अबी तालिब और माता का नाम फ़ातिमा बिन्ते असद(स:अ) ये मोहम्मद साहब के चचेरे भाई और दामाद थे इनकी पत्नी का नाम सैयदा फ़ातिमा ज़हरा(स:अ)
इनके पुत्र
और इनकी पुत्रियों के नाम सैयदा ज़ैनब(स:अ) , सैयदा उम्मे कुलसुम(स:अ) थी।
इनके पुत्र
- हज़रत हसन(स:अ)
- हज़रत हुसैन(स:अ)
- हज़रत अब्बास (स:अ)
और इनकी पुत्रियों के नाम सैयदा ज़ैनब(स:अ) , सैयदा उम्मे कुलसुम(स:अ) थी।
आपके जन्म की एक ऱोचक घटना है
जब फ़ातिमा (स:अ) प्रसव पीड़ा में थी वो दौड़ती हुई काबे की तरफ जा रही थी उस समय वो यह कहती हुई जा रही थी , "ऐ माबूद! मुझे तुझपर विश्वासऔर तेरे नबी (हज़रत अब्राहम अ:स) पर भी है, जिन्होंने तेरे आदेश पर इस घर (काबा) की नींव रखी, ऐ माबूद! तुझे उसी पैग़म्बर (स:अ:व:व) की क़सम है, और तुझे मेरे गर्भ में पलने वाले बच्चे की क़सम है की मेरे प्रसव क़ो मेरे आरामदायक बना दे" ऐसा कहते ही काबे की दिवार में रास्ता बन गया और वो उसके अंदर समां गई दिवार बपहले की जैसी हो गई ये देखते हुए वहाँ पर मौजूद लोग डर गए अपने घरो की ओर ने दौड़ना शुरू किया घरो में जाकर अपनी औरतो को फ़ातिमा बिन्ते असद(स:अ) की मदद के लिए भेजा औरतो ने बहुत कोशिश की पर काबे का दरवाजा खोलने की पर दरवाजा नहीं खुला इस घटना से सभी हैरत में पड गए।और फातिमा (स:अ) का सब बाहर रहकर बेसब्री से इंतिजार करने लगे कुछ देर के बाद फातिमा (स:अ) एक खूबसूरत बच्चे के साथ बाहर निकली उस समय बच्चे ने आँखे नहीं खोली अबू तालिब ने बच्चे को गोद में लिया तब भी बच्चे ने आँखे नहीं खोली उसी समय पैगम्बर मोहम्मद साहब (स:अ:व:व) आ गए बच्चे को उन्होंने अपनी गोद में ले लिया और पूछा क्या नाम रखोगे इस बच्चे का तो अबू तालिब ने कहा असद (lion)नाम सोचा है आपकी क्या राय है मोहम्मद साहब (स:अ:व:व) ने कहा इसका नाम "अली" रखो।
आपको कई नामो से और भी जाना जाता हैं
- बाब-अल-मदीनतुल-इल्म -the door to the city of knowledge
- अबू तुराब - father of the soil
- मुर्तज़ा -one who chosen and contenet
- असदुल्ला - lion of god
- हैदर "शौर "
आपकी परवरिश मोहम्मद साहब (स:अ:व:व) की निगरानी में हुई।
हज़रत अली (स:अ) ने( 10 साल) सबसे कम उम्र और सबसे पहले बच्चो में इस्लाम कबूल किया। जब मोहम्मद साहब (स:अ:व:व) सो रहे होते थे तो आप उनके दरवाज़े पर पहरा दिया करते थे। आप मोहम्मद साहब (स:अ:व:व) से बहुत मोहब्बत करते थे एक बार आपने कहा की जितना कोई प्यासा ठंडे पानी को चाहता है उससे कही ज्यादा मै मोहम्मद साहब (स:अ:व:व) को चाहता हूँ। .
JULFIKAR |
फिर वो दरवाजा २५-३० लोगो ने उठाने की कोसिस की पर हिला तक नहीं पाए।
7 रमज़ान को मक्का पर चढ़ाई की गई जिसमे सेना की जिम्मा हज़रत अली (स:अ) को सौपा गया हज़रत अली (स:अ) ने मक्का में घुसना सुरु किया पर बिना किसी जंग के मक्का में पहुंच गए।
आपने कई जंगे लड़ी आपकी बहादुरी का कोई भी सानी ना था और ना ही कभी हुआ।
- जंग ए हुनैन
- जंग ए उहद
कूफ़ा के बाहर नजफ़ (ईराक़) में उनको दफ़न किया गया।
हज़रत अली (स:अ) के अनमोल वचन
- जो तुम्हरी ख़ामोशी से तुम्हरी तकलीफ का अंदाजा न लगा सके उसके सामने जुबां से इजहार करना अपने लफ्जो की बर्बादी करना है।
- अगर कोई अपनी भूख के लिए रोटी चोरी करता है तो चोर के नहीं बादशाह के हाथ काटने चाहिए।
- अपने जिस्म को ज़रूरत से ज़्यादा न सवारों,क्योंकि इसे तो मिट्टी में मिल जाना है,सवॉरना है तो अपनी रूह को सवॉरों क्योंकि इसे तुम्हारे रब के पास जाना है।
- जाहिल के सामने कभी भी अक्ल की बात मत करना पहले बहस करेगा फिर हार देखकर दुशमन हो जायेगा।
- जिल्लत उठाने से अच्छा है तकलीफ उठाओ।
- कभी भी अपनी जिस्मानी ताकत और दौलत पर भरोसा मत करना क्योकि बीमारी और गरीबी आने में वक़्त नहीं लगता।
- अगर दोस्त बनाना तुम्हरी कमजोरी है तो तुम दुनिया के सबसे ताक़तवर इंसान हो।
- इंसान की जुबान उसकी अक़्ल का पता देती है और हर आदमी अपनी जुबान के निचे छिपा होता है।
- जो इंसान सजदों में रोता है उसे तक़दीर में रोना नहीं पड़ता।
- किसी की बेवसीै पर मत हसो ये वक़्त तुम पर भी आ सकता है। .
- किसी की आँख तुम्हारी वजह से नम न हो क्योंकि तुम्हे उसके हर इक आंसू का क़र्ज़ चुकाना होगा।
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