महात्मा बुद्ध |
महात्मा बुद्ध एक परिचय :-
महात्मा बुद्ध नाम सुनते ही एक शांतिमय चेहरा आखो के से सामने आ जाता है ऐसा प्रतीत होता है की उस चेहरे के चारो ओर शांति ही शांति है
कोई मोह माया और हिंसा जैसी कोई भी चीज उस व्यक्तित्व को छू भी नहीं सकती है।
महात्मा बुद्ध ने अहिंसा का सन्देश पूरी दुनिया को दिया आज दुनिया में उनके द्वारा बनाया गया धर्म जिसे बौद्ध धर्म के नाम से जानते है जिसकी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान है जिसके मानाने वालो या ये कहे महात्मा बुद्ध के बताये हुए रस्ते हुए पर चलने वाले लोग आज पूरी दुनिया में है।दुनिया में चीन जापान श्रीलंका जैसे अठारह देश है जो बौद्ध धर्म को अपना मुख्या धर्म मानते है।
आज मैं आपको बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध के बारे में कुछ जानकारी देना चाहता हूँ।
आज मैं आपको बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध के बारे में कुछ जानकारी देना चाहता हूँ।
महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के समीप लुम्बनी(नेपाल) नामक स्थान पर 563 ई. पू. में हुआ था इनके पिता शुद्धोधन शाक्य साम्राज्य शासक थे इनकी माता का नाम महामाया था जो की देवदेह साम्राज्य की राजकुमारी थी इनके बचपन का ने नाम सिद्धार्थ था इनकी माता की मृत्यु इनके जन्म के सातवे दिन ही हो गई इनका लालन पालन इनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया।
सिद्धार्थ बचपन से ही दयावान शांति प्रिय एवम एकाग्र थे जिस कारन उनके पिता ने उनका विवाह 16 वर्ष की आयु में ही राजकुमारी यशोधरा से करवा दिया कुछ समय के बाद उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया पुत्र होने के पश्च्चात उन्होंने कहा था की आज उनके बंधन में एक कड़ी और जुड़ गई। उन्हें सारे सुख प्राप्त थे पर उन्हें शांति की तलाश थी जों उन्हें नहीं मिल रही थी अपनी तलाश को पूरा करने के लिए तथ बुढ़ापा रोग दुःख और मृत्यु का सच जानने के लिए एक रात अपना महल छोड़ कर निकल पड़े सत्य की खोज में जो इन सब से मुक्ति दिला सके।
वर्षो की तपस्या से उन्हें बोधगया (बिहार )में बौधी वृक्ष के निचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और सिद्धार्थ से बुद्ध बन गए।काशी के पास सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया। जो की उस समय की सरल भाषा पाली में था उनकी इसी सरल भाषा से उनको लोगो ने बहुत जल्दी समझना शुरू कर दिया दिन पर दिन उनके अनुयायी बढ़ते गए।
बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को माध्यम मार्ग का उपदेश दिया सभी तरह के दुखो के कारण और उसके निवारण के लिए अष्टांगीक मार्ग सुझाया उन्होंने अहिंसा पर सबसे ज्यादा जोर दिया उन्होंने पशु बलि की घोर निंदा की।
इनकी मृत्यु या महापरिनिर्वाण(ईसवी पूर्व 483) 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर भारत में हुई थी।
बौद्ध धर्म में ना ऊंच नीच का कोई स्थान नहीं इसमें सभी लोगो के लिए रस्ते खुले हुए है कोई भी बौद्ध धर्म अपना सकता है कई बड़े बड़े राजाओं ने इस धर्म को अपनाया और इसका प्रचार दूर दूर तक किया मौर्या काल में ये भारत से निकल कर दुनिया में फ़ैल गया।
बुद्ध के उपदेश :-
वर्षो की तपस्या से उन्हें बोधगया (बिहार )में बौधी वृक्ष के निचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और सिद्धार्थ से बुद्ध बन गए।काशी के पास सारनाथ में उन्होंने अपना पहला उपदेश दिया। जो की उस समय की सरल भाषा पाली में था उनकी इसी सरल भाषा से उनको लोगो ने बहुत जल्दी समझना शुरू कर दिया दिन पर दिन उनके अनुयायी बढ़ते गए।
बुद्ध ने अपने अनुयायिओं को माध्यम मार्ग का उपदेश दिया सभी तरह के दुखो के कारण और उसके निवारण के लिए अष्टांगीक मार्ग सुझाया उन्होंने अहिंसा पर सबसे ज्यादा जोर दिया उन्होंने पशु बलि की घोर निंदा की।
इनकी मृत्यु या महापरिनिर्वाण(ईसवी पूर्व 483) 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर भारत में हुई थी।
बौद्ध धर्म में ना ऊंच नीच का कोई स्थान नहीं इसमें सभी लोगो के लिए रस्ते खुले हुए है कोई भी बौद्ध धर्म अपना सकता है कई बड़े बड़े राजाओं ने इस धर्म को अपनाया और इसका प्रचार दूर दूर तक किया मौर्या काल में ये भारत से निकल कर दुनिया में फ़ैल गया।
बुद्ध के उपदेश :-
- सम्यक ज्ञान
- जीवन को पवित्र बना के रखना
- जीवन में सब कुछ या पूर्णता प्राप्त करना
- निर्वाण
- तृष्णा कात्याग करना
- सभी संस्कार अनित्य हैं
- कर्म ही मानव के नैतिक संसाधन कां अधार है।
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